लेखनी कविता - क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में - फ़िराक़ गोरखपुरी

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क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र[1] में नमनाक[2] हैं पलकें क्यों याद तेरी आते ही तारे निकल आए बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद ...

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